प्रथम बाह्य वृत्तिक, द्वितीय आभ्यांतर वृत्तिक, तृतीय स्तम्भक वृत्तिक और चतुर्थ वह प्राणायाम होता है, जिसमें बाह्य एवं आभ्यांतर दोनों प्रकार के विषय का अतिक्रमण होता है,
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प्रथम बाह्य वृत्तिक, द्वितीय आभ्यांतर वृत्तिक, तृतीय स्तम्भक वृत्तिक और चतुर्थ वह प्राणायाम होता है, जिसमें बाह्य एवं आभ्यांतर दोनों प्रकार के विषय का अतिक्रमण होता है, किंतु इसके अलावा भी प्राणायाम का उल्लेख है।
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प्रथम बाह् य वृत्तिक, द्वितीय आभ्यांतर वृत्तिक, तृतीय स्तम्भक वृत्तिक और चतुर्थ वह प्राणायाम होता है, जिसमें बाह् य एवं आभ्यांतर दोनों प्रकार के विषय का अतिक्रमण होता है, किंतु इसके अलावा भी प्राणायाम का उल्लेख है।
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गिलोय-इसके गुडुची, अमृतादि अनेक नाम है, यह कड़वी, हल्की, पचने के समय मीठी, रसीली, स्तम्भक, कसैली और उश्ण है, यह बल को बढ़ाती है, जठराग्नि को प्रदीप्त करती है, कामला, कुश्ठ, वादी, रुधिर प्रकोप, ज्वर, पित्त और उल्टी इन सबको जीतती है।
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नाम-सं-उशीर, हिं-खस,गांडर,म-व्याणार मूल,बं-कालावाला,गु-कालोबालो | विवरण-खस गांडर घास की जड़ है, इसको उशीर भी कहते हैं | गुण-उशीर शीतल, कड़ुवा, मधुर तथा हल्का है | दाह,परिश्रम, पसीना को नष्ट करने वाला है | विसर्प,मूत्रकृच्छ्र, व्रण, कफ,मदात्यय,वमन को दूर करता है | यह रक्त विकार में अधिक लाभ करता है | और रक्त शोधक पाचक तथा स्तम्भक है
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अर्जुन वृक्ष की छाल ह्रदय के लिए है ही बेहतर, इसके सेवन से ह्रदय के मांसपेशियों को मजबूती मिलता है और इसके आलावा यह शक्तिवर्धक, रक्त स्तम्भक एवं प्रमेह नाशक भी है | यह नाडी की क्षीणता में वृद्धि, पुराणी खांसी, श्वास आदि विकारों में भी हितकर है | इसे मोटापे को रोकने वाला तथा हड्डियों के टूटने पर उस अंग की हड्डी को स्थिर करके रक्त संचार को सामान्य रूप से चालू करके हड्डियों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पाया गया है |