धन की अतिव्याप्ति व्यक्ति को जहाँ एक ओर असुरक्षित बनाती है वहीं भ्रष्टाचरण के लिए उकसाती है और अन्ततः मानवता से दूर ले जाती है।
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* साध्य की समव्याप्ति उपाधि में अपेक्षित है, ऐसा अगर नहीं कहेंगे तो उपर्युक्त स्थल में अश्रावणत्व में उपाधि के लक्षण की अतिव्याप्ति होने लगेगी।
33.
यह अतिव्याप्ति आंतरिक विवादों की सम्भावना बनाती है तथा ऐसे संवैधानिक संशोधनों तथा न्यायिक निर्णयों का कारण बनती है जिनसे शक्ति-संतुलन में परिवर्तन आता है.
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भ्रष्टाचार पर किये जाने वाले हर सवाल को-केवल भ्रष्टाचार की अतिव्याप्ति के उदाहरण देकर-परस्पर दोषारोपण करते हुए मूल मुद्दे से लोगों को भटका दिया जाता है।
35.
अव्याप्ति, अतिव्याप्ति आदि दोषों को दूर रखते हुए बारीकी के साथ लक्षण बनाने का प्रयत्न, जो बाद में नव्यन्याय का एक लक्ष्य बन गया, उदयनाचार्य ने इसमें किया है।
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किसी भी परिभाषा को दो दोषों से रहित होना चाहिए-१ अतिव्याप्ति दोष २ अव्याप्ति दोष परिभाषा उस वस्तु के लक्षणों का मुख्यत: वर्णन करती है, लेकिन उपरोक्त परिभाषा की कमियों को हमें देखना होगा।
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अतिव्याप्ति दोष उसे कहते हैं, जिसमें लक्षण उस वस्तु के अलावा अन्य में भी रहते हैं जैसे 'गाय' उसे कहते ही, जिसके चार थन होते ही, इसमें अतिव्याप्ति दोष है, क्योंकि भैंस इत्यादि के भी ऐसा होता है।
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अतिव्याप्ति दोष उसे कहते हैं, जिसमें लक्षण उस वस्तु के अलावा अन्य में भी रहते हैं जैसे 'गाय' उसे कहते ही, जिसके चार थन होते ही, इसमें अतिव्याप्ति दोष है, क्योंकि भैंस इत्यादि के भी ऐसा होता है।
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अतिव्याप्ति और दोहराव रोकने के लिए योजना की भूमिका को फिर से तय किया गया है ताकि खाद्य सुरक्षा के बुनियादी उद्देश्यों तथा ग्रामीण जनता के जीवन स्तर को आज के कृषि परिदृश्य में अधिक प्रासंगिक बनाया जा सके।
40.
परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो।