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उपांशु उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.मंत्र के जप को उच्चारण के अनुसार वाचिक, उपांशु और मानस की तीन श्रेणियों में बांटा गया है।

32.उपांशु जप से कर्णातीत ध्वनि उत्पन्न होती है और उसका प्रभाव रोग शोक को दूर करने वाला साबित होता है।

33.जो मन्द स्वर से एक के बाद एक पद को पढते जाते है वह उपांशु की श्रेणी में माना जाता है।

34.उपांशु जप योग का वह प्रकार है जिसमें जप करने वाले के होंठ और जुबान तो हिलते हैं, लेकिन आवाज नहीं होती।

35.उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती।

36.उपांशु में वाक् का वह स्वरूप होता है जिसमें शब्द, भाषा, विचार, पढ़ना, सुनना आदि सम्मिलित होता है।

37.यानि कि जप यदि अस्फुट स्वर में उपांशु ढंग से मानसिक एकाग्रता के साथ किया जाय, तो असर ज्यादा गहरा होता है।

38.उपांशु का अर्थ मंद स्वर से मुँह के अंदर ही किया जाने वाला जप और मानस अर्थात मन ही मन किए जाने वाला जप।

39.इसी को विपरीत क्रम में देखें तो वाचिक, उपांशु और मानस जप कण्ठ से वक्षस्थल और वक्षस्थल से नाभि की ओर जाते प्रतीत होते हैं।

40.इस स्थिति में जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है, हम जप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांशु में पहुंच जाते हैं।

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