कर्तरी योग, 8. बारहवें, छठे और आठवें चंद्र का होना तथा चंद्र के किसी अन्य ग्रह का होना, 9.
32.
चारों केंद्रों का लाभ जातक को इसलिए मिल रहा है क्योंकि पाप ग्रह सूर्य पर चंद्र की दृष्टि है और सूर्य शुभ कर्तरी में है।
33.
परन्तु यह कर्तरी योग किसी एक भाव के दोनों ओर ग्रह होने पर होता है और केवल किसी एक ग्रह पर ही लागू होता है।
34.
केंद्र या त्रिकोण में गुरु, शुक्र या बुध हो, या कर्तरीकारक ग्रह नीचगत अथवा शत्रुक्षेत्री हो तो कर्तरी दोष का कुप्रभाव कम हो जाता है।
35.
विवाह लग्न से द्वितीय भाव में कोई क्रूर वक्री ग्रह या द्वादश भाव में कोई क्रूर मार्गी ग्रह हो तो उसे क्रूर कर्तरी दोष कहा जाता है।
36.
पंचम भाव में सूर्य तुला राशि एवं मकर कुंभ नवांश में हो और पंचम भाव पाप कर्तरी प्रभाव में हो तो पितृ दोष से संतान हानि होती है।
37.
विवाह लग्न से द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी दोष होता है, जो विवाह के लिए निषिद्ध है।
38.
विवाह लग्न से द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी दोष होता है, जो विवाह के लिए निषिद्ध है।
39.
कर्त्तरी-दोष: लग्न से बारहवें में मार्गी और द्वितीय में वक्री दोनों पाप ग्रह हों तो लग्न में आगे-पीछे दोनों ओर से जाने के कारण यह ' कर्तरी दोष ' कहलाता है।
40.
कुंडली में अग्नि तत्व राशि सिंह का स्वामी सूर्य अग्नि तत्व राशि धनु में पंचम त्रिकोण राशि में गुरु से केंद्र में और शुभ कर्तरी में होने के कारण विशेष प्रभावशाली रहेगा।