| 31. | अत्र जगद्गर्हितस्यापि मरोः कविप्रतिभोल्लिखितेन लोकोत्तरौदार्यधुराधिरोपणेन तादृक्स्वरूपान्तरमुन्मीलितं यत्प्रतीयमानत्वेनोदारचरितस्य कस्यापि सत्स्वप्युचितपरिस्पन्दसुन्दरेषु पदार्थसहस्त्रेषु तदेव व्यपदेशपात्रतामर्हतीति तात्पर्यं ।
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| 32. | पुष्प मंत्र: ह्रीं नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च / मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में //
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| 33. | यही तो सौंदर्य भी है-“ क्षणे-क्षणे यत् नवतामुपैति, तदेव रूपं रमणीयतायाः ” ।
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| 34. | त्यक्त्वादृष्टो जीवं जाम्भलीकम उपास्यते. आपोपत्रमदमूलम च शाकल्म प्रियदेवभू. मश्रज्यम परिक्रमाहर्त्रिम तदेव सम ग्यानभू.
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| 35. | सौन्दर्य की परिभाषा देते हुए कालिदास लिखते हैं-क्षणे क्षणे यत् नवतामुपैति तदेव रूपं.......
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| 36. | जीवं नयति यत तदेव जीवनं. ” जीव को जो लेकर चले वह जीवन है.
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| 37. | इतने में वही शुभ्र जटाधारी पत्थर फिर से बोलाः व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस् त्वं तदेव में रूपम् इदं प्रपश्य।
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| 38. | प्रभाकर मत में कहा गया है-“कार्य विध्यर्थ:, तच्च कार्य धात्वर्थातिरिक्तम्, अपूर्व शब्द वाच्यम् तदेव विध्यर्थ इति”
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| 39. | कथं तर्हि भगवता........ विनेयजनेभ्यो विविधप्रकारेभ्यो धर्मदेशना देशिता? एकक्षणवागुदाहारेणैव तत्तज्जनमनस्तमोहरणी........ शरदरुणमहाप्रभेति। तदेव सूत्रे: यथा यन्त्रकृतं तूर्यं वाद्यते पवनेरितम्।
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| 40. | इंडिका 10: 37) मानता है-विन्ध्यवासिनीदेविवर प्रसाद (तदेव 10: 25) के अभिलेखीय सन्दर्भ मिलते हैं।
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