| 31. | गीता में आत्मसंयमयोग की यात्रा आत्मा की परमात्मा से तद्रूप होने की यात्रा है।
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| 32. | द्वारा तद्रूप अपने जीवन का निर्माण किया है तो व्यक्ति का अहंकार धीरे-धीरे घटता
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| 33. | तद्रूप विधि से प्रमाण आत्मा (गठन-पूर्ण परमाणु का मध्यांश) में अनुभव होने के बाद है।
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| 34. | इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं।
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| 35. | हम उनके साथ पूर्णतः तद्रूप होते चले जाएँ, भागवत् भाव में जीते चले जाएँ।
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| 36. | ध्यान जिनका किया जाता है, उन्हें लक्ष्य मानकर तद्रूप बनने का प्रयत्न किया जाता है।
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| 37. | इसी कारण शरीर से तद्रूप होने पर सृष्टि से सुख की आशा उत्पन्न होती है ।
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| 38. | तद्रूप होने पर प्रमाण होता ही है, उसके लिए कोई अलग से प्रयत्न नहीं करना पड़ता।
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| 39. | -जो माता-पिता के शुक्र-शोणितद्वारा बनने वाले शरीर से भिन्न होता है-‘ वाय्वग्रसारी तद्रूप देहमन्यत् प्रपद्यते।
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| 40. | सत्य की सुन्दरता, उसका शिवत्व, उसके तद्रूप होने में है वस्त्राच्छादित होने में नहीं...
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