रमैया-जे है कि वन्देमातरम कहबे में तो इनको धर्म भ्रष्टï हो जातो है जे काफिर हो जाते हैं धरती की जै बोलवे में फिर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगावे में जे धर्मच्युत नहीं होत का?
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ग्रिफिथ के अनुवाद को धूम्रकेतु नामक देव की प्रेरणा बताकर हिंदुओं को धर्मच्युत करने वाले इस ईसाई वेतनभोगी के रहस्योद्घाटन पर मैं भाई अमितेश व अग्निवीर को सब धर्मप्रेमी हिंदुओं की ओर से हार्दिक साधुवाद देता हूँ.
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कहां जाता था कि अंग्रेज जिस पानी से नहाते और कुल्ला करते हैं उसी को नलों द्वारा घरों में प्रवाहित कर देते हैं ; नल भारतीयों को धर्मच्युत करने की एक चाल है, उसमें चमड़े का वाशसल लगता है।
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जब की उपरोक्त वचन “ और्व ” ऋषि का है जिन्होंने “ नग्न ” पन्थावलम्बियो के द्वारा सनातन शाश्वत धर्म से लोगो को भ्रष्ट कर धर्मच्युत, न्यायच्युत एवं सत्यच्युत करने के लिये उपरोक्त नियम बना कर उन्हें धर्मभ्रष्ट कर रहे थे.
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आखिर रजत पटल पर स्याह बिंदु क्यों? जो अपने जीवन की लगनशीलता, अनुशासन, संयम व धैर्य की पराकाष्ठामयी तपस्या द्वारा सफलता के शिखर पर पहुँचता है, वही व्यक्ति भला कैसे अपने एक धर्मच्युत कदम से पतित-स्वर्गदूत की भाँति अवरोहित होकर गर्त को प्राप्त हो जाता है।
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ऐसे सभी धर्मच्युत लोगों में एक समान प्रवृत्ति जो इन वर्षों में देखी गई है वह यह कि इनमें से अधिकांश खुद के धर्मच्युत होने की ग्लानि से ग्रसित हैं और ऐसे लोग अपने इस ग्लानि-घाव को सहलाने के वास्ते इन्हें मन्दिर-मठों-मजारों पर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते देखा जा सकता है।
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ऐसे सभी धर्मच्युत लोगों में एक समान प्रवृत्ति जो इन वर्षों में देखी गई है वह यह कि इनमें से अधिकांश खुद के धर्मच्युत होने की ग्लानि से ग्रसित हैं और ऐसे लोग अपने इस ग्लानि-घाव को सहलाने के वास्ते इन्हें मन्दिर-मठों-मजारों पर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते देखा जा सकता है।
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गुरुद्वारा वालों ने तो जूतों का एक ऐसा उपयोग ईज़ाद किया है जो संपूर्ण विश्व में अनोखा है-ज्ञानी जैलसिंह जब होम-मिनिस्टर थे तो आपरेशन ब्लू-स्टार की अनुमति देने के कारण उन्हें तनखैइया! धर्मच्युत! घोषित कर दिया गया था और एक हफ्ते तक स्वर्ण-मंदिर के सामने बैठकर बाहर उतारे हुए सभी जूतों को साफ़ करने की सज़ा सुनाई गई थी।
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इसके स्पर्श को सहकर क्यों न मैं इसका हाथ पकड़ हो जाऊं क्षणभर को थोडा धर्मच्युत... बह चलूँ इसके ज्वार में.. झरझर कलकल... पर नहीं... यह चिरंतन वेग इसका मेरी जड़ता से ही तो संभव है... यह इसका जीवन... (जया पाठक) “इतिहास” मैं बिना हिले डुले बिना सर घुमाए देखता हूँ वह सब जितना दिख जाता है खुद ब खुद आसानी से जितना दिखाना चाहता है वह जो समक्ष खड़ा रह जाता है युद्ध के बाद...