| 31. | और ज्यादातर भ्रूमध्य (भोंहो के बीच) ध्यान टिकाकर इसको ध्यान होना मान लेते हैं ।
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| 32. | जब मंत्र, साधक के भ्रूमध्य या आज्ञा-चक्र में अग्नि-अक्षरों में लिखा दिखाई दे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ समझाना चाहिए।
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| 33. | बायें नथुने से गहरी श्वास खींचें, भाव करें कि श्वास नासिका मार्ग से ऊपर भ्रूमध्य तक जाती है।
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| 34. | ये ' केन्द्र ' या ' चक्र ' मनुष्य मस्तिष्क में भ्रूमध्य से ऊपर तक हैं जो पाँच हैं.
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| 35. | आज्ञाचक्र (भ्रूमध्य) में किया गया चंदन या सिंदूर आदि का तिलक विचारशक्ति व आज्ञाशक्ति को विकसित करता है।
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| 36. | 5. आकाशीय धारणा: इस धारणा के अंतर्गत कण्ठकूप और भ्रूमध्य में अपना ध्यान लगाकर श्वास को अंदर रोककर रखें।
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| 37. | जब साधक नियमित रूप से ध्यान करता है, तो उसके भ्रूमध्य और आज्ञा चक्र का स्थान ही क्यों तेजस्वी रहता है?
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| 38. | साधक अपने ऊर्ध्वमुखी यात्रा भ्रूमध्य में स्थित आज्ञाचक्र में अपनी सुरत को केन्द्रित करके सहसदल कमल से प्रारम्भ करते हैं ।
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| 39. | ध्यान करते समय श्वास पर ध्यान रहे, दृष्टि नासाग्र या भ्रूमध्य में रहे अथवा अपने को साक्षी भाव से देखता रहे।
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| 40. | अगर भौतिक स्पर्श करें तो हम भ्रूमध्य के स्थान को तो छू सकते हैं, पर आज्ञा चक्र में स्पर्श नहीं कर सकते।
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