लेकिन विरोध की आग इससे भी ठंढी नहीं हुई तो महिलाओं ने सैयद बंगाले शाह की मजार के पास खड़े एक पेड़ पर रंग बिरंगे फीते बांधकर ‘ रेत ' के लेखक भगवानदास मोरवाल के लिए ये मनौती मांगी कि वो धनहीन, यशहीन और विद्याहीन हो जाएं ।
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उस विचारधारा ने नारी के मनुष्योचित अधिकारों पर आक्रमण किया और पुरुष की श्रेष्ठता एवं सुविधा को पोषण देने के लिए उस पर अनेक प्रतिबन्ध लगाकर शक्तिहीन, साहसहीन, विद्याहीन बनाकर उसे इतना लुंज-पुञ्ज कर दिया कि बेचारी को समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकना तो दूर, आत्मरक्षा के लिए भी दूसरों का मोहताज होना पड़ा।
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वही नारी जो वैदिक युग में देवी थी धीरे धीरे अपने पद से नीचे खिसकने लगी मध्यकाल में जब सामन्तवादी युग आया तो दुर्बल लोगो का शोषण किया जाने लगा उसके लिए जंगली कानून बने और उसी कानून में नारी भी आगई नारी जाती को सामूहिक रूप से हे पतित अनधिकारी बताया गया उसी विचारधारा ने नारी के मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा कर पुरूष को हर जगह बेहतर बता कर उसको इतना शक्तिहीन विद्याहीन साहसहीन कर दिया कि नारी समाज के लिए तो क्या उपयोगी सिद्ध होती अपनी आत्मरक्षा के लिए भी पुरूष पर निर्भर हो गई ।