| 31. | देशामर्शक सूत्रों का सुविस्तृत व्याख्यान करते हैं, किसी विवक्षित प्रकरण में प्रवाह्यमान-अप्रवाह्यमान उपदेश भी प्रदर्शित करते हैं।
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| 32. | चोदनालक्षणोधर्म: सूत्र में-“ ननु अतथाभूतमप्यर्थ ब्रूयात् चोदना ” इत्यादि भाष्य से अर्थतथात्व ही विवक्षित है।
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| 33. | विवक्षित गुणस्थान को छोड़कर अन्यत्र जाकर पुन: उसी गुणस्थान में कितने समय बाद आना सम्भव है?
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| 34. | वाचस्पतिमिश्र ने कहा है कि प्रत्यक्ष सूत्र में अव्यपदेश्य तथा व्यवसायात्मक पदों से सूत्रकार का यही अभिप्राय विवक्षित है।
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| 35. | सूत्र के भाष्य “अतथात्व भूतं अर्थ” से अबाधित्व अर्थनिष्ठ धर्म विवक्षित है, जिसका निरूपण ज्ञान के द्वारा होता है।
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| 36. | यहाँ भी पहले कथन में ब्रह्म की ही प्रधानता और उसकी जगद्रूपता ही विवक्षित है-उसी पर जोर है।
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| 37. | चौदना सूत्र के भाष्य “अतथात्व भूतं अर्थ” से अबाधित्व अर्थनिष्ठ धर्म विवक्षित है, जिसका निरूपण ज्ञान के द्वारा होता है।
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| 38. | (5) जहां कहीं लिंग-विशेष जानकर भी उसे प्रकट करना विवक्षित न हो, वहां पुलिंग का प्रयोग होता है।
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| 39. | वार्त्तिककार की दृष्टि में उपलब्धि तथा अनुपलब्धि की अव्यवस्था से क्रमश: साधक प्रमाण एवं बाधक प्रमाण का अभाव विवक्षित है।
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| 40. | इससे जहाँ स्थिर आरंभस्थान विवक्षित हो, वहाँ असंदिग्धता के लिए “निरयण” के स्थान पर “नाक्षत्र” शब्द का प्रयोग करना अधिक अच्छा है।
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