ब्रहा और प्रकृति के नित्य व्याप्य व्यापक भाव-संबंध के कारण महाप्रलय के पश्चात पुन: जब ब्रहमा के ईक्षण द्वारा सर्ग का आविर्भाव होता है, तब अव्यक्त प्रकृति से सबसे पहले महा-आकाश, काल, दिशा के बाद महत तत्व प्रकट होता है।
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भावार्थ:-श्री रामजी वही सच्चिदानंदघन हैं जो अजन्मे, विज्ञानस्वरूप, रूप और बल के धाम, सर्वव्यापक एवं व्याप्य (सर्वरूप), अखंड, अनंत, संपूर्ण, अमोघशक्ति (जिसकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं होती) और छह ऐश्वर्यों से युक्त भगवान् हैं॥ 2 ॥
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इसके मानने में युक्ति यह है कि उक्त सन्निकर्षजन्य प्रत्यक्ष के नहीं मानने पर वह्नि के साथ धूम का महानस में प्रत्यक्ष होने पर भी सकलदेशीय धूम के साथ चक्षुष् इन्द्रिय के संयोग के अभाव में क्या सर्वत्र ही धूम वह्नि का व्याप्य है तथा धूम युक्त सभी स्थलों में वह्नि रहता है या नहीं-इस तरह का जो संशय होता है, वह नहीं हो पाएगा।