वमन, विरेजन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है।
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39. दूध व चावल की खीरः यह सर्वप्रिय, शीतल, पित्तशामक, मेदवर्धक, शक्तिदायक, वातपित्त, रक्तपित्त, अग्निमांद्य व अरूचि का नाश करने वाला सात्त्विक आहार है।
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ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है।
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बच्चों में अग्निमांद्य: बच्चों को मंदाग्नि होने पर वे दूध कम पीते हैं, पतला दुर्गंध युक्त दस्त होता है, बच्चे सुस्त बने रहते हैं, पेट में दर्द होता रहता है, जिससे बच्चा अकसर रोता रहता है।
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धन्यवाद संजय नेहरा, गाजियाबाद संजय जी, आपकी पत्नी को कोई बड़ी बीमारी नहीं है जैसा कि आपने तमाम रिपोर्ट्स व टैस्ट्स करा डाले हैं मैंने सारे देख लिये हैं उन्हें बस अग्निमांद्य है यानि कि पाचक अग्नि का धीमा हो जाना।
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धन्यवाद संजय नेहरा, गाजियाबाद संजय जी, आपकी पत्नी को कोई बड़ी बीमारी नहीं है जैसा कि आपने तमाम रिपोर्ट्स व टैस्ट्स करा डाले हैं मैंने सारे देख लिये हैं उन्हें बस अग्निमांद्य है यानि कि पाचक अग्नि का धीमा हो जाना।
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अल्प मात्रा में लिया गया आहार भी ठीक से न पचे, मस्तक और पेट में वजन मालूम पड़े और शरीर में हड़फुटन हो तो समझिए कि अग्निमांद्य से पीड़ित हैं अर्थात् पेट में भूख की अग्नि (तड़प) मंद हो रही है या पाचन-क्रिया की गति कम हो गई है।