मनुष्य को शीघ्र सिद्धि प्राप्ति के लिए यह जानकारी दे दें कि वाचिक जप एक गुना फल प्रदान करता है, उपांशु जप सौ गुना फल देता है।
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जप करते समय होंठ हिले पर ध्वनि प्रकट नहीं हो अर्थात् जप करने वाले के पास से काई अन्य ध्वनि सुनाई न दे तो इसे उपांशु जप कहते हैं।
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माला धारण करने से लाभ होंठ व जीभ मिलाकर उपांशु जप करने वाले साधकों को कंठ की धमनियों का प्रयोग करना पड़ता, जिसके लिये अधिक श्रम करना पड़ता है।
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जिसमें जीभ और ओंठ हिलते रहें, सुनाई न दे, वह उपांशु है और जिसमें ओंठ बन्द रहें जीभ चिपकी रहे और जाप मन में होता रहे, वह मानस (मानसिक) है।
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अपने-अपने धर्मों के मंत्र या शुभ पंक्तियों का गहरी सांस लेकर दोहराव या उपांशु जप (धीमी आवाज में या फुसफुसाते हुए) आपके मस्तिष्क को सक्रिय रखने में सहायक सिद्ध होगा।
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और जो मानसिक, वाचिक और उपांशु जाप की बात कही जाती है, उसमें भी सिर्फ ध्वनियों के हल्के भारी किए जाने की प्रक्रिया ही काम में लाई जाती है।
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जिसमें शब्द तो सुनाई नहीं देता, किन्तु होठ हिलते हुए नजर आते हैं, उसे उपांशु कहते हैं और अर्थज्ञानपूर्वक मन से ही किया जाने वाला जप मानस जप कहलाता है।
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उपांशु जप-जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।
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उपांशु जप-जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।
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उल्लसितमनः सरस्वती नें छात्रों की ध्यानमयी स्तुति में विघ्न न पड़ॆ ऎसा ध्यान रखते हुए अन्दर झाँक कर देखा तो पद्मासन में स्थित मुनि वशिष्ठ उपांशु स्वरों में ' ओम् भूर भुवःऽऽऽऽऽ' गायत्रीमन्त्र का जप कर रहे थे।