कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्त-कुन्तला, शव पर आरुढ़, मुण्ड-माला-धारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है ।
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रहिमन खोटी आदि की, सो परिनाम लखाय जैसे दीपक तम भखै, कज्जल वमन कराय कविवर रहीम कहते हैं कि बुराई होने पर उसका फ़ल अवश्य दिखाई देता है।
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जैसे यदि नीलम के टुकडे में अञ्जन कज्जल (पोटैसियम कार्बाइड) क्षैतिज अवस्था में संचरण कर रहा हो तो उसे शनि की पारावतन्श अवस्था में धारण करना चाहिये।
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रहिमन खोटी आदि की, सो परिनाम लखाय जैसे दीपक तम भखै, कज्जल वमन कराय कविवर रहीम कहते हैं कि बुराई होने पर उसका फ़ल अवश्य दिखाई देता है।
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अर्थात अपनी सामर्थ्य के अनुसार कम से कम कज्जल का बीस गुना पारद एवं मनिफेन (Magnesium) के चालीस गुना पारद, लिंग निर्माण के लिए परम आवश्यक है.
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इस प्रकार कम से कम सत्तर प्रतिशत पारा, पंद्रह प्रतिशत मणि फेन या मेगनीसियम तथा दस प्रतिशत कज्जल या कार्बन तथा पांच प्रतिशत अंगमेवा या पोटैसियम कार्बोनेट होना चाहि ए.
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राव कज्जल देव (११ २ ३-११ ६ ३) ने ११ ५ ३ में हथिकाथ पर कब्जा किया और अपनी राज्य की सीमओं को आज की बाह तहसील तक बढ़ा दिया ।
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यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं।
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यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं।
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यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं।