चित्र-परिचय जिस प्रकार हिरणी प्रीतिवश अपने शिशु की रक्षा के लिए आक्रमण करने वाले सिंह का मुकाबला कर रही है, उसी प्रकार अल्पशक्ति वाला भक्त भक्तिवश भगवान की स्तुति करने में प्रवृत्त हो रहा है।
42.
चित्र-परिचय (देव-दुन्दुभि प्रातिहार्य) प्रभु समवसरण में बिराजमान हैं, इन्द्र-ध्वज लहरा रहा है, देवगण आकाश में दुन्दुभि बजाकर उद्घोषणा कर रहे हैं, जिसे सुनकर स्त्री, पुरुष, पशु आदि भगवान के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते हैं।
43.
चित्र-परिचय जैसे भयंकर मगरमच्छों से युक्त तूफानी समुद्र को मनुष्य अपनी भुजाओं से तैरने में समर्थ नहीं हो पा रहा है, वैसे प्रभु के गुणरूपी असंख्य रत्न-राशि को स्वयं देव-गुरु बृहस्पति भी नहीं गिन पाते हैं।
44.
चित्र-परिचय (सर्प-भय-मुक्ति) भयंकर क्रुद्ध नाग को देखकर सामान्य मानव भय से काला पड़ जाता है, किन्तु भगवद् भक्त भगवन्नाम-स्मरणरूपी नागदमनी जड़ी के बल पर भगवान का नाम जपता हुआ उस नाग को निर्भय होकर लाँघ जाता है।
45.
वल्कल का पार्श्व-स्वर चित्र-परिचय दे रहा था और फिल्म ‘ ममता ' का, हेमन्त कुमार और लताजी का गाया गीत ‘ छुपा लो यूँ दिल में, प्यार मेरा ' वातावरण को अपनी गन्ध में लपेट रहा था।
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चित्र-परिचय (सुर पुष्प-वृष्टि प्रातिहार्य) आकाश से देवगण अनेक प्रकार के पुष्प एवं सुगंधित जल की वृष्टि कर रहे हैं, यह पुष्प-वृष्टि ऐसी लगती है, मानो भगवान के श्रीमुख से वचनरूपी पुष्प बरस रहे हों, और उन वचन-पुष्पों का समूह ही
47.
चित्र-परिचय (भामण्डल-प्रातिहार्य) समवसरण में विराजित भगवान का मुख-मंडल चारों दिशाओं में दिखाई देता है और उसके चारों तरफ एक प्रकार का गोल प्रकाशपुँज (आभामंडल-औरा) बन जाता है तथा यह आभामंडल सूर्य से अधिक तेजस्वी व चन्द्रमा से अधिक शुभ्र एवं शीतलतादायक है।
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चित्र-परिचय जैसे बालक जल में प्रतिबिम्बित होते चन्द्रमा की परछाईं को पकड़ने का प्रयास करता है, लेकिन वह पकड़ नहीं सकता, वैसे ही देवेन्द्रों द्वारा अर्चित महाप्रभु की स्तुति का प्रयास करना मुझ जैसे साधारण बुद्धि के लिए बाल-चेष्टा के समान लगता है।
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चित्र-परिचय सामान्य दीपक तेल और बाती से जलता है, काला धुँआ उगलता है, वायु के झोंके से काँप जाता है और थोड़े से भाग को प्रकाशित करता है, किन्तु भगवान आदीश्वर एक अलौकिक दीपक हैं, जो संपूर्ण जगत् को प्रकाशित कर रहे हैं।
50.
चित्र-परिचय (जल-भय मुक्ति) तूफानी समुद्र में नाव डगमगा रही है, मगरमच्छ आदि जल-जन्तु नाव को उलटने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसी विषम परिस्थिति में जल-यात्री भगवद् स्मरण करने लगते हैं, तब प्रभु में चित्त लगते ही उनकी नाव सुरक्षित किनारे लग जाती है।