पाश्चात्त्य विद्वान् ने इसका नाम वादशास्त्र रक्खा है, क्योंकि यहाँ वाद, जल्प तथा वितण्डा आदि का विचार अर्थात शास्त्रार्थ की परिपाटी न्यायसूत्र में ही आरम्भ हो गया था और उसका पल्लवन उदयनाचार्य के न्यायपरिशिष्ट तथा शंकर मिश्र के वादिविनोद आदि में देखा जाता है।
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पौढ़ी गढ़वाल त्योंहारों मैं साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौं मेला सुभनाथ का मेला और पटोरिया मेला प्रसिद्द हैं इसी प्रकार यहाँ के पर्यटन स्थल मैं कंडोलिया का शिव मन्दिर, बिनसर महादेव, मसूरी, खिर्सू, लाल टिब्बा, ताराकुण्ड, जल्प देवी मन्दिर प्रमुख हैं।
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न्याय दर्शन एक यथार्थवादी दर्शन है गौतम ऋषि के न्याय दर्शन में सोलह तथ्यों का उल्लेख प्राप्त होता है जिसमें प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धात, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रह स्थान हैं.
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जैसे जल्प में वादी और प्रतिवादी दोनों अपने अपने पक्ष का साधन और परपक्ष का खंडन करते हैं, पर वितंडा में केवल वादी ही अपने पक्ष के साधन का प्रयास करता है, प्रतिवादी वादी के पक्ष का खंडन करने में ही अपनी कृतार्थता मानकर अपने पक्ष की स्थापना तथा उसके साधन के प्रयास से विरत रहता है।
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जैसे जल्प में वादी और प्रतिवादी दोनों अपने अपने पक्ष का साधन और परपक्ष का खंडन करते हैं, पर वितंडा में केवल वादी ही अपने पक्ष के साधन का प्रयास करता है, प्रतिवादी वादी के पक्ष का खंडन करने में ही अपनी कृतार्थता मानकर अपने पक्ष की स्थापना तथा उसके साधन के प्रयास से विरत रहता है।
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उपरोक्त वर्णन केवल प्रमाण के चार प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन है इसके अतिरिक्त श्री गौतम ने प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धात, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रह आदि पर भी पूर्ण वर्णन समाज कल्याण हेतु न्यायशास्त्र के रूप में दिया |