| 1. | [संपादित करें] वाद, जल्प और वितंडा
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| 2. | जल्प का ज हिन्दी में आकर ग मे तब्दील हुआ।
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| 3. | वाद, जल्प और वितंडा [संपादित करें]
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| 4. | मौनान्मूकः प्रवचनपटुर्वातुलो जल्प वा धृष्टः पाश्र्वे वसति च सदा दूरश्चाऽप्रगल्भः।
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| 5. | जल्प और वितंडा का स्वभाव वाद से पर्याप्त भिन्न है।
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| 6. | जल्प और वितंडा का स्वभाव वाद से पर्याप्त भिन्न है।
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| 7. | इसके तीन प्रकार-वाद, जल्प और वितण्डा माने गये हैं।
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| 8. | जल्प और वितण्डा कथाओं में तो इनका अव्याहृत व्यवहार होता है।
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| 9. | वाद, जल्प और वितण्डा, तीनों प्रकार की बहस में हेत्वाभास संभव है।
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| 10. | न्यायशास्त्र के ज्ञातव्य विषयों मे वाद, जल्प और वितंडा का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
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