तद् तदेव इत्तरो जनः स यद् प्रतमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते (जो-जो श्रेष्ठ पुरुष करता है, दूसरे लोग भी वैसा ही करते है।
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दक्षिणायन के छह मास उनकी रात्रि और उत्तरायण के छह मास उनका दिन कहा जाता है-यदर्कर्वष तदेव देवानां दैत्यानां च द्युरात्रम्।
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“ दिने दिने यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः ” महाकवि जगन्नाथ ने माना कि जो रोजबरोज नवीनता लिए हुए हो, वही रमणीय है।
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कहा है “ क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती तदेव रूपम रमणीयताया ” अर्थात हर समय जिसमें नवीनता का समावेश हो वही मनोहारी सौंदर्य होता है.
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यद् यदाचरति श्रेष्ठ: तद् तदेव इत्तरो जनः स यद् प्रतमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते (जो-जो श्रेष्ठ पुरुष करता है, दूसरे लोग भी वैसा ही करते है।
46.
यदेव विद्ययाकरोमि श्राद्धयोपनिषदा तदेव वीर्यवत्तरं भवति ” (अर्थात-जो कर्म विद्या, श्रद्धा और योग से युक्त किया जाए वही प्रवलतर है) छंदोज्ञोपनिषद (१ ।
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प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः ” इस प्रकार इसका नाम ‘ प्रयाग ' पडा. और इस प्रकार अंत में फिर ब्रह्मा जी ईश्वर क़ी इच्छा सर्वोपरि मान कर अपने लोक चले गये.
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Phrases०ई अत अति अथ अपर इति इत्ते एव एवं कई कम कसाव का काल कि कि कि च कि व की के को क्या चर चित् जा जि तत तत-ध तत् तत्र तथा च तदा तदेव तब तय तल
49.
[[Panini | पाणिनि]] ने अष्टाध्यायी 4.1.174-1 / 6 तदेव 5.3.91 '' वत्सोक्षाश्वर्ष-भेम्यश्च तनुत्वे '' सूत्रांक अनुसार 2040 अनुसार वत्स देश की स्थिति उक्ष (कृष्णा सागर) तथा श्ववर्ष तथा ऋषभ (समे, सीरिया) तक थी।
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(2)-त-अर्थात अस्तित्व का मध्य प्रारूप जो तरली कृत प्रवाह के एक ध्रुवी कृत अंत पर बनता एवं बिगड़ता है जो तर्क (तरणाय तृप्ताय सीमितम यत्कारणः तदेव तर्कः अर्थात तरन या मोक्ष एवं तृप्ति के लिए ही जिसके कार्य सीमित हो वह तर्क है.