| 41. | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।
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| 42. | देही बन निष्प्राण में, वही फूंकता प्राण।
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| 43. | नर देही में आयकर, सहज किए सब काज।
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| 44. | केन मार्गेण भो स्वामिन् देही ब्रह्ममयो भवेत्
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| 45. | देही का गरब न करणा, माटी में मिल जासी।
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| 46. | तथा शारीराणि विहाय जीर्णान नृन्यानि संयाति नवानि देही.
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| 47. | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।
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| 48. | कबीर ने “ देही माटी बोलै पवनां. ”
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| 49. | अधिकारी व कर्मचारी भी जवाब देही होंगे।
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| 50. | पंच तत्त्तु मिल देही का आकारा ।
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