हाँ सर, बात तो सही है यही तो माया है (हल्के में लीजियेगा) जब कृष्ण ने मुक्ति सुझाई तो है-रथ के घोडे़ इन्द्रियाँ हैं जो हर तरह से विषयासक्त होना चाहती हैं।
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यह मन वासनामय, विषयासक्त, गुणों से प्रेरित, विकारी और भूत एवं इन्द्रियरुप सोलह कलाओं में मुख्य है | यही भिन्न-भिन्न नामों से देवता और मनुष्यादी रूप धारण करके शरीररूप उपाधियों के भेद से जीवकी उत्तमता और अधमता का कारण होता है || ५ ||
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यह अपेक्षा उनसे रहेगी... बाकी आपसे क्या बात की जाय....? क्वचिदन्यतोपि पर विषय को विस्तार से लेने का अजेंडा है-युग द्रष्टा देव ऋषियों की वाणी को केवल एक सीमित काल खंड के संदर्भ में देखना उचित नहीं है.....! बहरहाल विषयासक्त जुझारू भूमिका निभाई है यहाँ आपने....
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कहा गया है कि दुष्ट, कपटी, लोभी, लालची, विषयासक्त मनुश्य उपरोक्त जंगम और स्थावर तीर्थों का कितना ही दर्शन लाभ क्यों न पा ले, मगर यदि उसमे सत्य, क्षमा, दया और इन्द्रिय संयम, दान और अन्य सदाचार नहीं हैं तो कितने ही तीर्थों का फेरा लगा ले, उसे पावनता नहीं मिल सकती ।
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बेशक इस क्रम में माँसाहार, बीड़ी पीने, चोरी करने, विषयासक्त रहना जैसी कई आरंभिक भूलें भी उनसे हुईं और बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर भी अनेक भ्रमों-आकर्षणों ने उन्हें जब-तब घेरा, लेकिन अपने पारिवारिक संस्कारों, माता-पिता के प्रति अनन्य भक्ति, सत्य, अहिंसा तथा ईश्वर साध्य बनाने के कारण गाँधीजी उन संकटों से उबरते रहे।
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बेशक इस क्रम में मांसाहार, बीड़ी पीने, चोरी करने, विषयासक्त रहना जैसी कई आरंभिक भूलें भी उनसे हुईं और बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर भी अनेक भ्रमों-आकर्षणों ने उन्हें जब-तब घेरा लेकिन अपने पारिवारिक संस्कारों, माता-पिता के प्रति अनन्य भक्ति, सत्य, अहिंसा तथा ईश्वर साध्य बनाने के कारण, गांधीजी उन संकटों से उबरते रहे ।
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कहा गया है कि दुष्ट, कपटी, लोभी, लालची, विषयासक्त मनुष्य उपर्युक्त जंगम और स्थावर तीर्थों का कितना ही दर्शन लाभ क्यों न पा ले, मगर यदि उसमे सत्य, क्षमा, दया, इन्द्रिय संयम, दान और अन्य सदाचार नहीं हैं तो कितने ही तीर्थों का फेरा लगा ले, उसे पावनता नहीं मिल सकती।
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प्रादा का हस्ताक्षर शैली भी विषयासक्त फेब्रिक्स अधिकांशत में काले, भूरे, ग्रेय्स, हरे, और क्रीम को सृजित करने और सरल फिर भी उत्तेजित शैलियों इटली में जीवन कहा गया है कि वस्त्र भी “सेक्सी और ज्यादा त्वचा के प्रदर्शित किये बगैर विशवास से बताया जाता था.उपसाधनों में तंग चमड़ी के पट्टे, सुरुचिपूर्ण ऊँचे एडी के जूते,और बेशक क्लास्सिक हैण्ड बेग शामिल थे.
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प्रादा का हस्ताक्षर शैली भी विषयासक्त फेब्रिक्स अधिकांशत में काले, भूरे, ग्रेय्स, हरे, और क्रीम को सृजित करने और सरल फिर भी उत्तेजित शैलियों {{0}इटली में जीवन कहा गया है कि वस्त्र भी “सेक्सी और ज्यादा त्वचा के प्रदर्शित किये बगैर विशवास से बताया जाता था.उपसाधनों में तंग चमड़ी के पट्टे, सुरुचिपूर्ण ऊँचे एडी के जूते,और बेशक क्लास्सिक हैण्ड बेग[1] शामिल थे.
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बेशक इस क्रम में माँसाहार, बीड़ी पीने, चोरी करने, विषयासक्त रहना जैसी कई आरंभिक भूलें भी उनसे हुईं और बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर भी अनेक भ्रमों-आकर्षणों ने उन्हें जब-तब घेरा, लेकिन अपने पारिवारिक संस्कारों, माता-पिता के प्रति अनन्य भक्ति, सत्य, अहिंसा तथा ईश्वर साध्य बनाने के कारण गाँधीजी उन संकटों से उबरते रहे।