| 1. | जनकजी ने ' गज रथ तुरग दास अरू दासी।
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| 2. | सूत तुरग हरि तात रोम रोमन अरु रथ
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| 3. | जनकजी ने ‘गज रथ तुरग दास अरू दासी।
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| 4. | जनकजी ने ‘ गज रथ तुरग दास अरू दासी।
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| 5. | कच्छप की सी सकुच है, बक्र तुरग की चाल।
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| 6. | देखि सुबेष महामुनि जाना॥ उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा।
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| 7. | करि निज तुरग सकल वीरन कहँ टेरी।
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| 8. | रथ तुरग सारथी बिसिख धनु दलि हरिसुत को मद हरहु।
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| 9. | तुरग सारथी रथी सहित रथ, यत्र तत्र सर्वत्र खडे थे।
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| 10. | बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा॥ नृप बहु भाँति प्रसंसेउ ताही।
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