उपांशु वाक्य
उच्चारण: [ upaaneshu ]
"उपांशु" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- वाचिक, उपांशु और मानस जप के तेज गति वाले अभ्यास कराए जाते हैं।
- साधना के भी मात्र तीन ही भेद है-अंशु, उपांशु एवं प्रगल् भ.
- उपांशु अर्थात केवल होठ ही हिले. शेष कोई अंग हरक़त न करे.
- जप का स्वरूप वाचिक से उपांशु तथा मानस की ओर अग्रसर होने लगता है।
- इसका जप लयबद्ध ढंग से उपांशु या मानसिक रूप में भी किया जा सकता है।
- जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव || ऋ 10 / 83 / 7
- व्यक्ति वाचिक जप से शुरू होता है, उपांशु से होते हुए मानस जप में उतरता है।
- व्यक्ति वाचिक जप से शुरू होता है, उपांशु से होते हुए मानस जप में उतरता है।
- रहे उपांशु जप करना है, जो जल आप नित्य अर्पित करेंगे उसे अगले दिन अपने स्नान के
- तब भयास की निरंतरता इस जप को वाचिक से उपांशु और आगे मानस में प्रष्ठित कर देती है।
- मंत्र के जप को उच्चारण के अनुसार वाचिक, उपांशु और मानस की तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
- उपांशु जप से कर्णातीत ध्वनि उत्पन्न होती है और उसका प्रभाव रोग शोक को दूर करने वाला साबित होता है।
- जो मन्द स्वर से एक के बाद एक पद को पढते जाते है वह उपांशु की श्रेणी में माना जाता है।
- उपांशु जप योग का वह प्रकार है जिसमें जप करने वाले के होंठ और जुबान तो हिलते हैं, लेकिन आवाज नहीं होती।
- उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती।
- उपांशु में वाक् का वह स्वरूप होता है जिसमें शब्द, भाषा, विचार, पढ़ना, सुनना आदि सम्मिलित होता है।
- यानि कि जप यदि अस्फुट स्वर में उपांशु ढंग से मानसिक एकाग्रता के साथ किया जाय, तो असर ज्यादा गहरा होता है।
- उपांशु का अर्थ मंद स्वर से मुँह के अंदर ही किया जाने वाला जप और मानस अर्थात मन ही मन किए जाने वाला जप।
- इसी को विपरीत क्रम में देखें तो वाचिक, उपांशु और मानस जप कण्ठ से वक्षस्थल और वक्षस्थल से नाभि की ओर जाते प्रतीत होते हैं।
- इस स्थिति में जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है, हम जप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांशु में पहुंच जाते हैं।
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