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निःश्रेयस वाक्य

उच्चारण: [ niaheshereyes ]
"निःश्रेयस" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • इससे सम्पुटित कर काई भी पूजन अर्चन लोक परलोक दोनो में अभ्युदय ओर निःश्रेयस का कारण होता है।
  • भूगोल, इतिहास और राज्य व्यवस्थाओं की क्षुद्र संकीर्णताओं के इतर प्रत्येक मानव का अभ्युदय और निःश्रेयस ही भारत का अभीष्ट है।
  • इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है।
  • इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है।
  • अर्थात् अभ्युदय (सांसारिक उन्नति) एवं निःश्रेयस (पारलौकिक कल्याण) की सिद्धि के लिए जिसका वरण किया जाए, वही वर्ण है।
  • “जिसके आचरण करने से संसार में उत्तम सुख और निःश्रेयस अर्थात मोक्षसुख की प्राप्ति होती है, उसी का नाम धर्म है | यह भी वेदों की व्याख्या है |
  • भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन के मूल्यों के रूप में उल्लेखित करते हुए 'मोक्ष‘ को निःश्रेयस की प्राप्ति का सर्वोत्तम लक्ष्य माना गया।
  • रंगोत्सव के इस पावन पर्व पर सबको अपने जीवन में अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति हो!!!!! जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए मनुष्य का धार्मिक होना बहुत जरूरी है।
  • व्यक्ति का मोक्ष और समाज का उद्धार इन दोनों आदर्शों को अभेद बुद्धि से देखने वाले, अभ्युदय और निःश्रेयस का समन्वय साधने वाले और अध्यात्म-परायण व्यास से बढ़कर कोई समाजशास्त्री नहीं हुआ है।
  • व्यक्ति का मोक्ष और समाज का उद्धार इन दोनों आदर्शों को अभेद बुद्धि से देखने वाले, अभ्युदय और निःश्रेयस का समन्वय साधने वाले और अध्यात्म-परायण व्यास से बढ़कर कोई समाजशास्त्री नहीं हुआ है।
  • शास्त्रों में धर्म की परिभाषा यह बतलाई गई है कि जो अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति कराये, वही धर्म है, अर्थात् मनुष्य के कर्तव्य और अकर्तव्य-पाप और पुण्य-शुभ और अशुभ कर्म का सम्बन्ध धर्म से है ।।
  • ‘ निज पर शासन फिर अनुशासन ' का उद्घोष देने वाले आचार्य श्री तुलसी ने अपने उद्बोधनों में, प्रवचनों में कहा-धर्म की उपासना व क्रियाकांड निःश्रेयस तक पहुंचने का एक पक्ष हो सकता है किन्तु यह समीचीन नहीं है।
  • वाचस्पति मिश्र ने योग भाष्य की तत्व वैशारदी व्याख्या में ‘ आगम ' शब्द का अर्थ करते हुए लिखा है कि जिससे अभ्युदय (लौकिक कल्याण) और निःश्रेयस (मोक्ष) के उपाय बुद्धि में आते हैं, वह ‘ आगम ' कहलाता है।
  • मैं ओम, निःश्रेयस, अभ्युदय हूं मैं सूर्य हूं, मैं ही उदय हूं मैं शिवाजी की तलवार हूं मंच पे सवार हूं गांधी का लंगोट हूं मैं आर्मी का फटा हुआ कोट हूं मैं 121 करोड़ का ठेकेदार हूं, मैं भले ही एक वोट हूं
  • सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, मीमांसा (पूर्व) और वेदांत में क्रमशः मोक्ष, अपवर्ग, निःश्रेयस, मुक्ति या स्वर्गप्राप्ति तथा कैवल्य शब्दों का व्यवहार हुआ है पर बौद्ध दर्शन में बराबर निर्वाण शब्द ही आया है और उसकी विशेष रूप से व्याख्या की गई है।
  • इस आश्रम की स्थापना जिन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए की गयी थी, उनमें मन्दिर-देवालयों की स्थापना, उनकी सेवा-पूजा की व्यवस्था, हित साहित्य का संरक्षण, संवर्धन एवं प्रकाशन, मानव-सेवा, सेवाव्रती साधु-समाज की सेवा, उद्यान सेवा एवं गौ-सेवा, पुस्तकालय, विद्यालयों की स्थापना, साधु-समाज का संगठन तथा भारतीय जनता के सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक निर्झरण व्दारा अभ्युदय एवं निःश्रेयस का मार्ग प्रशस्त करना ।
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