प्रश्नोपनिषद वाक्य
उच्चारण: [ pershenopenised ]
"प्रश्नोपनिषद" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- “ प्रश्नोपनिषद ” नाम ही से आप समझ सकते हैं कि, प्रश्न होंगे और चर्चाएँ भी ।
- उपनिषद प्रश्नों से भरे हैं-एक नाम शायद आपने सुना हो-नाम ही है “ प्रश्नोपनिषद ”
- प्रश्नोपनिषद में जगत के सञ्चालन के लिए ११ देवताये प्रतिनिधि है! पञ्च महाभूत पञ्च इन्द्रिय और प्राण!!
- वेद के पुरूष सूक्त में, प्रश्नोपनिषद में बृहदारण्यक उपनिषद में व छान्दोग्य उपनिषद में भी मनुष्य की विभिन्न 16 कलाओं का ही वर्णन है।
- संभोग को साधना के एक मार्ग या यज्ञ की तरह देखने की परम्परा के दर्शन प्रश्नोपनिषद, छान्दोग्य, वृहदारण्यक और वामाचारी मान्यताओं में होते हैं।
- लोकार्पण करते हुए डॉक्टर कर्णसिंह ने कहा कि-प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई पंडित सुरेश नीरव की पुस्तक उत्तर प्रश्नोपनिषद को मैंने बहुत ध्यान से पढ़ा है।
- कठोपनिषद 2 / 15, प्रश्नोपनिषद पंचम प्रश्न, तैत्तरीयोपनिषद अष्टम अनुवाक, श्वेताश्वरोपनिषद प्रथम अध्याय, मंडूक्योपनिषद आगम प्रकरण आदि सर्वत्र ओंकार के महत्व को बता गया है।
- प्रश्नोपनिषद प्रश्न परंपरा का घोतक है इस उपनिषद में प्रश्नों द्वारा कथा का निर्माण हुआ है जिसमें ऋषियों के प्रश्नों को पिप्पलाद द्वारा उचित रूप में व्यक्त किया गया है.
- चित्त और आत्मा के अन्योन्याश्रित संबंध पर प्रकाश डालते हुए प्रश्नोपनिषद का ऋषि कहता है-मृत्यु के पश्चात जिस प्रकार का चित्त होता है उसी प्रकार का चित्त प्राण के पास पहुंचता है।
- प्रश्नोपनिषद के पांचवें प्रश्न को सत्यकाम ने पूछ वह पिप्पलाद जी से प्रश्न करते हैं हे ऋषिवर जो व्यक्ति जीवन अपने जीवन में “ ॐ ” का उच्चारण एवं ध्यान करता है वह किस लोक को पाता है तथा किस स्थिति को प्राप्त करता है.
- प्रश्नोपनिषद के इस चतुर्थ प्रश्न में गार्ग्य ऋषि जी महर्षि पिप्पलाद जी से पूछते हैं की हे ऋषिवर शरीर में कौन सी इन्द्री शयन करती है और कौन-सी जाग्रत रहती है तथा कौन सी इन्द्री स्वप्न देखती है एवं कौन सी इंद्री सुख का अनुभव करती है और यह सब किसमें स्थित है.
- इस संदर्भ में प्रश्नोपनिषद का ऋषि पृष्ठ 130 पर कहता है-पुण्य कार्य करने से हृदय में बैठे हुए आत्मा को उदान नाम का प्राण पुण्यलोक में ले जाता है, पाप कर्म करनेसे आत्मा को उदान पाप लोक में ले जाता है, दोनों प्रकार के कर्म करनेसे आत्मा को उदान मनुष्य लोक में ले जाता है।
- प्रश्नोपनिषद उपनिषद छ: भागों में विभाजित है जिसके प्रत्येक भाग के दो खण्ड हैं इस उपनिषद में प्रश्नों द्वारा रथि और प्राण के मह्त्व, सृष्टि का सृजन एवं ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया गया है जिसमें प्राणों का मह्त्व सर्वोपरी बताया गया है तथा ओम की मात्राओं एवं उसकी सत्ता का रूप दर्शाया है.
- जैसे प्रश्नोपनिषद में आता है की मनुष्य के अन्दर ७ २ करोड़ ७ २ लाख, १ ० हजार और १ नाडी है … ‘ करीब करीब या अबाउट ‘ वाला ज्ञान नही … ऐसे पूर्वजो की तुम संतान हो …! तो ये अधिदैविक ज्ञान है … लेकिन जिन्हों ने ये ज्ञान पाया वो ऋषी मुनियों ने भी कहा की, जिस से ये अधिदैविक ज्ञान प्रकाशित होता वो ब्रम्हज्ञान ही सर्वोपरि है..
- प्रश्नोपनिषद के छठे प्रश्न में सुकेशा भारद्वाज जी उनसे पूछते हैं हे ऋषिवर एक बार कौसल देश के राजपुरुष हिरण्यनाभ ने मुझसे एक प्रश्न किया था उसने मुझसे सोलह कलाओं से पूर्ण पुरुष के बारे में जानना चाहा किंतु मुझे ऎसे किसी व्यक्ति का भान नहीं है इस कारण मैं उन्हें इस प्रश्न का उत्तर न दे सका कृपा कर आप यदि किसी ऎसे पुरूष के बारे में जानते हैं जो सोलह कलाओं से पूर्ण हो तो उसका ज्ञान मुझे भी प्रदान करें
- * गृहस्थ आश्रम में ब्रह्मचारी: शास्त्र के नियमानुसार ऋतू काल में रात्रि के समय नियमाकुल, स्त्री प्रसंग करते है तो वे शास्त्र की आज्ञा का पालन करने के कारण ब्रह्मचारी के तुल्य ही है--प्रश्नोपनिषद--सृष्टि रचना भगवान् शिव-विश्व को उत्पन्न किया / रक्षा के लिए अपने दाहिने अंग से-ब्रह्म (रजोगुण) और अपने बांये अंग से विष्णु (सत्व गुण) ब्रह्मा-मन से (संकल्प)-मरीचि तथा पुत्रो पुलस्त्य बाहों उरुओ चरण क्षत्रिय वैश्य शुद् र.
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