प्रश्नोपनिषद् वाक्य
उच्चारण: [ pershenopenised ]
"प्रश्नोपनिषद्" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- (प्रश्नोपनिषद् प्रश्न ५ श्लोक ७),
- प्रमुख उपनिषदों में प्रश्नोपनिषद् भी एक है।
- (प्रश्नोपनिषद्, द्वितीय प्रश्न, १ ३)
- प्रमुख उपनिषदों में प्रश्नोपनिषद् भी एक है।
- प्रश्नोपनिषद् प्राचीनतम उपनिषदों में चतुर्थ, आथर्वण ब्राह्मण का औपनिषद अंश है।
- इन्हीं प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों का संग्रह विश्वख्यात दर्शन ग्रन्थ ‘ प्रश्नोपनिषद् ' है।
- इन्हीं प्रश्नों प्रतिप्रश्नों का संग्रह विख्यात दर्शन ग्रंथ ‘ प्रश्नोपनिषद् ' है।
- प्रश्नोपनिषद् में यज्ञ को देवताओं, पितरों और ऋषियों का जीवन-प्राण बताया गया है ।
- प्रश्नोपनिषद् पर सर्वप्रधान शांकरभाष्य अतिरिक्त मध्यभाष्य तथा रामानुजाचार्य जयतीर्थाचार्य एव अन्य आचार्यो की टीकाएँ अथवा भाष्य प्रचलित है।
- प्राण का सूर्य के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है, इस सम्बंध में बहुत ही मार्मिक प्रसंग प्रश्नोपनिषद् में आया है ।।
- प्रश्नोपनिषद् के अनुसार ‘ वह प्राण उदानवायु से सहित जीवात्मा को उसके संकल्पानुसार भिन्न-भिन्न लोकों (योनियों) में ले जाता है।
- प्रश्नोपनिषद् के अनुसार ' वह प्राण उदानवायु के सहारे जीवात्मा को उसके संकल्पानुसार भिन्न-भिन्न लोकों (योनियों) ' में ले जाता है।
- प्रश्नोपनिषद् के यम-नचिकेता संवाद में जिस पंचग्नि प्राण-विद्या का उल्लेख किया गया है वह गायत्री महाशक्ति में सन्निहित पंच प्राणों के प्रखर बनाने का ही विज्ञान है ।
- इसीलिये उपनिषदों में कहीं कहीं उनकी बड़ी-प्रशंसा भी पाई जाती है, जैसे प्रश्नोपनिषद् में कहा गया है-व्रात्यस्त्वं प्राणैक ऋषिरत्ता विश्वस्य सत्पतिः ' (२, ११) ।
- प्रश्नोपनिषद् में वर्णित है कि कात्यायन कबंधी के आचार्य पिप्पलाद से यह प्रश्न करने पर कि सृष्टि में जो कुछ दृष्टिगोचर है वह आदि में किससे उत्पन्न हुआ आचार्य ने उत्तर दिया-
- प्रश्नोपनिषद् में सत्य काम ने पिप्पलाद ऋषि से पूछा है कि ' हे भगवन! मनुष्यों में जो मरणपर्यन्त ॐकार का ध्यान करता है, उसको किस लोक की प्राप्ति होती है?' ऋषि ने कहा कि 'वह सगुण या निर्गुण ॐकार रूप ब्रह्म को प्राप्त होता है।'
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