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बृहदारण्यक उपनिषद् वाक्य

उच्चारण: [ berihedaarenyek upenised ]
"बृहदारण्यक उपनिषद्" का अर्थ
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • बृहदारण्यक उपनिषद् में बताया गया है कि दक्ष प्रजापति ने देवता, मनुष्य और राक्षसों के सामने एक अक्षर द का उच्चारण किया ।
  • मनुष्य किस तरह मरता है और पुन: जन्म लेता है इसे बृहदारण्यक उपनिषद् में कई उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है.
  • बृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य अपनी समस्त पार्थिव सम्पत्ति को अपनी दो पत्नियों कात्यायनी और मैत्रेयी में विभाजित करने का प्रस्ताव रखते हैं.
  • बृहदारण्यक उपनिषद् में बताया गया है कि दक्ष प्रजापति ने देवता, मनुष्य और राक्षसों के सामने एक अक्षर द का उच्चारण किया ।
  • बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार मेघगर्जना रूपी दैवी वाक् कामी, क्रोधी और लोभी स्वभाव वालों के लिए एक ही संदेश द द द देती है.
  • बृहदारण्यक उपनिषद् का एक श्लोक “आत्मानं चेद्विजानीयात......” (४.४.१२) ज्ञानी की इस स्थिति का वर्णन करता है और यह २९८ श्लोकों का अध्याय उसी एक श्लोक की व्याख्या करता है।
  • महर्षि याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक उपनिषद् में कहते हैं-जो ब्रह्म को प्राप्त है उसको वह अनन्त असीम, अचिंत्य आनन्द प्राप्त है जिसकी किसी के साथ तुलना नहीं हो सकती।
  • जबकि भारतीय मनीषियों ने काम, अर्थ और यश को (पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा-‘ बृहदारण्यक उपनिषद् ') प्रेरक शक्तियाँ माना अवश्य है ; किन्तु इन्हें उच्च स्थान नहीं दिया है।
  • वाणी का महत्व: बृहदारण्यक उपनिषद् में राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछते हैं-जब सूर्य अस्त हो जाता है, चंद्रमा की चांदनी भी नहीं रहती और आग भी बुझ जाती है, उस समय मनुष्य को प्रकाश देने वाली कौन-सी वस्तु है?
  • वाणी का महत्व: बृहदारण्यक उपनिषद् में राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछते हैं-जब सूर्य अस्त हो जाता है, चंद्रमा की चांदनी भी नहीं रहती और आग भी बुझ जाती है, उस समय मनुष्य को प्रकाश देने वाली कौन-सी वस्तु है?
  • बृहदारण्यक उपनिषद् के चतुर्थ अध्याय के पाँचवें ब्राह्मण के 11 वें मंत्र में याज्ञवल्क्य एवं मैत्रेयी के संवाद के सिलसिले में याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा है कि ' यथाद्रैधाग्नेरभ्याहितस्य पृथग्धूमा विनिश्चिरन्त्येवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य नि: श्वसितमेतदृग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽथर्वांगिरस इतिहास: पुराणं विद्या उपनिषद: श्लोका: सूत्राण्यनुव्याख्यानिव्याख्यानीष्टं हुतमाशितं पायितमयं च लोक:
  • (वृहदारण्यक उपनिषद ६ / ४ / १, २) लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रति कि्रया केवल सन्तान प्राप्ति के जरिये के रूप में ही मान्य, क्योंकि उपनिषदों में स्पष्ट शब्दों में आया है कि यदि पति पत्नी किसी कारणवश गर्भधान नहीं करना चाहते है ता उसके लिए यौन कर्म करते समय इस मंत्र का जाप करें ' इन्द्रेयेण ते रेतसा रेत आददे (बृहदारण्यक उपनिषद्) ‘ ऐसा करने पर पत्नी गर्भवती नहीं होती है।
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