और सत्यग्यान को गृहण करने वाले अंकुरी जीवों को भवसागर से छुङाऊँगा ।
4.
तेरी चालाकी समझ में आते ही शीघ्र सावधान होने वाले अंकुरी जीवों को मैं भवसागर से मुक्त कराऊँगा ।
5.
देखो! कब से उदास बीज मेड़ पर है खड़ा प्राण से तुम छू दो उसे तो हो जाए वह हरा-भरा बीज को बिथरा कर जब परती धरती टूटती है तब अक्षत अंकुरी भी अनवरत अगुआकर तुम्हीं से फूटती है......