का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार
3.
परंतु, स्थायी भाव के जाग्रत होने पर स्वाभाविक, अकृत्रिम, अयत्नज, अंगविकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं।
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परंतु, स्थायी भाव के जाग्रत होने पर स्वाभाविक, अकृत्रिम, अयत्नज, अंगविकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं।
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परंतु, स्थायी भाव के जाग्रत होने पर स्वाभाविक, अकृत्रिम, अयत्नज, अंगविकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं.
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परंतु, स्थायी भाव के जाग्रत होने पर स्वाभाविक, अकृत्रिम, अयत्नज, अंगविकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं।
7.
हलासन के नियमित अभ्यास से अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं।
8.
लाभः हलासन के अभ्यास से अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं।
9.
मन्दाग्नि, अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, थोड़े दिनों का अपेन्डीसाइटिस और साधारण गाँठ, अंगविकार, असमय आया हुआ वृद्धत्व, दमा, कफ, चमड़ी के रोग, रक्तदोष, स्त्रियों को मासिक धर्म की अनियमितता एवं दर्द, मासिक न आना अथवा अधिक आना इत्यादि रोगों में इस आसन से लाभ होता है।