सन् 2007 महान अंतर्राष्ट्रवाद यौद्धा डाक्टर कोटनीस की 65 वीं वर्षगांठ है।
2.
प्रेमचंद का मजदुर कहीं ना कहीं मार्क्स उस मजदुर को सिरे से खारिज करता है जो सरहदों को तोड़ कर अंतर्राष्ट्रवाद की पहल में संघर्षरत है!
3.
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जब राष्ट्रवाद के बदले अंतर्राष्ट्रवाद का समर्थन किया था तो उनकी भर्त्सना की गई थी (और वह भी वसुधैवकुटुंबकम के देश में)... वे अपने समय से बहुत आगे थे...
4.
अंतर्राष्ट्रवाद तभी संभव है जब राष्ट्रवाद अस्तित्व में आ जाए, अर्थात जब भिन्न-भिन्न देशों के लोग संगठित हो चुकें और वे एक व्यक्ति की तरह काम करने योग्य बन जाएं।
5.
प्रश्न उठता है कि ऐसे युग में ‘ स्वभाषा ' और ‘ स्वदेश ' की बात करना क्या उचित होगा? क्या राष्ट्रवाद की बात करना इस अंतर्राष्ट्रवाद के युग में प्रासंगिक (त्मसमअंदज) है?