मृत्यु की नित्यता, अकाट्यता और सार्वभौमिकता का उद्घोष है।
2.
मृत्यु की नित्यता, अकाट्यता और सार्वभौमिकता का उद् घोष है।
3.
में ही नहीं, उसकी पूरी जीवन दृष्टि में एक ऐसी अकाट्यता
4.
परिपूर्णता होगी अकाट्यता के साथ, सत्यता के साथ, यथार्थवादिता के साथ, तब ही अधिक से अधिक जनसमुदाय अध्यात्म की ओर उन्मुख होगा।
5.
उसके तर्कों में ही नहीं, उसकी पूरी जीवन दृष्टि में एक ऐसी अकाट्यता और अनिवार्यता है कि उसकी गिनती हिन्दी नाटक के कुछ अविस्मरणीय पुरुष पात्रों में होगी।
6.
स्पष्ट है कि खतामा या खत्म शब्द में समाप्ति का भाव उपसंहार के अर्थ में नहीं बल्कि किसी तथ्य की सार्वभौमिकता, अकाट्यता अथवा परम सत्य के रूप में आ रहा है।