वह सेवानिवृत्त हो गए और १८४१ में इंगलैंड चले गए और आज के दिन से ठीक १५०वर्ष पहले जनवरी१६, १८५५ को अकीर्तित मर गए,।
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इस एएसीटी को कैंसर की अमान्य और अकीर्तित सुसाध्यता, कैंसर की प्राक्कथनीयता, कैंसर उपचार के सभी प्रकारों की खतरनाक प्रकृति, सभी कैंसर चिकित्सकों का ‘यदि आप करो तो भी शापित ’ और ‘यदि आप न करो तो भी शापित ’ का अनुभव, तथा, इनसे सर्वोपरि, कि कैंसर भी रोगी को अकेले छोड़ देने की अनुमति देता है, का अवश्य प्रचार करना चाहिए।