अक्षयतृतीया पर्व के साथ एक इतिहास, एक संस्कृति, एक सभ्यता, एक परम्परा जुड़ी हुई है।
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भारत देश में आज भी यह विश्वास है कि अक्षयतृतीया का दिन बिना पूछा मुहूर्त्त है।
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वैदिक परम्परा में कहा जाता है कि जमदग्नि के पुत्र परशुराम का जन्म अक्षयतृतीया के दिन हुआ।
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कुछ लोग मानते हैं कि सतयुग का प्रारम्भ अक्षयतृतीया के दिन से हुआ, इसलिए यह तिथि युगादि तिथि है।
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भागवत में बताया है कि एक बार युधिष्ठिर ने कर्मयोगी श्रीकृष्ण से अक्षयतृतीया का महात्म्य पूछा तो उन्हानें कहा कि-‘वैशाखस्य
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इसके पीछे उनका तर्क है कि इस साल अक्षयतृतीया पर विवाह लग्न न होने से 14 से 30 अप्रैल तक शादियां ही शादियां हैं।
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अक्षयतृतीया के दिन मुखवा जिसे मां गंगा का मायका कहते हैं, से पूरी भव्यता के साथ मां गंगा की डोली विभिन्न पड़ावों से होकर गंगोत्री पहुंचती है।।
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जिस प्रकार ‘ अक्षयतृतीया ' को लगाये गये वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित-पुष्पित होते हैं उसी प्रकार इस दिन वृक्षारोपण करने वाला प्राणी भी प्रगतिपथ की और अग्रसर होता है।