लेकिन सिर्फ इसलिए कि हमारी अनधीनता नहीं बदले अराजकता में बंदिशों का है लक्ष्य मात्र एक
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यह भारतीय इतिहास का सबसे विभ्रमकारी युग था जिसमें निहित स्वार्थों के द्वारा अनधीनता के नाम पर दासता, विकास के नाम पर विपन्नता और ज्ञान के नाम पर प्रचार परोसा गया.
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भले ही दिखूं मैं कठपुतले सा यह सीमितता नहीं है मेरी परतंत्रता सीमाहीनता होगी समस्या असीम की मैं तो हूँ उन्मुक्त सतत लांघने नई सीमाओं को सीमाओं का होना ही अर्थ देता है अनधीनता को कठपुतले को भी ध्यान से तो देखो मखौल उड़ाता मुझे दिखता वह देखने वालों का और उसे नचाती बेजार उँगलियों का
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जो नहीं चलते अब यही है नियति अब लोगों और समाज की उपेक्षा साहित्य की संस्कृति की कला की उदासीनता निःस्वार्थ सरोकारों के प्रति अनधीनता के मानदण्डो के प्रति समुचित शिक्षा के प्रसार के प्रति बौद्धिकता के प्रति अब भारी पड़ रही है तैयार हो चुका है ऐसा बहुसंख्य जो है मानसिक रूप से विकृत नैतिक रूप से भ्रष्ट और बौद्धिक रूप से दिवालिया यह समय है गंभीर संकट का समाज की समस्त सकारात्मक ऊर्जा लगे तब भी समय लगेगा इस संकट को दूर करने में-नीरज कुमार झा यह कौन है मौन