अनुद्विग्न हौठे मुनीश्वर, बोले अमृत गिरा से सौम्ये!
2.
बादला आते-जाते है, आकाश अनुद्विग्न शांत रहता है।
3.
अनुद्विग्न मन की कोशिश से, इसी योग में स्थित हैं रहते.
4.
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं ः-दुःखेषु अनुद्विग्न मनः सुखेषु विगत स्पृहः ।
5.
बस कुछ लिख जाय और अनुद्विग्न स्थिति को प्राप्त हो जाऊं किसी तरह!..
6.
जो कुछ भी होता है, उसे हम अनुद्विग्न रहकर उससे अप्रभावित रहते हुए स्वीकार करते है।
7.
अनुद्विग्न हौठे मुनीश्वर, बोले अमृत गिरा से सौम्ये! हो कल्याण, कहाँ से इस वन में आई हो?
8.
तब उत्तरोतर स्वस्थ और अनुद्विग्न और अकुंठित भाव से सुदर्शना को गोद में लिए रह कर उसके बालों में वह अपने हाथ फेरता रहा।
9.
सदा दौड़ता ही रहता इतिहास व्यग्र इस भय से, छूट न जाए कहीं संग भागते हुए अवसर का ; किंतु, अचंचल त्रिया बैठ अपने गम्भीर प्राणॉ में अनुद्विग्न, अनधीर काल का पथ देखा करती है.
10.
सुख और दुःख को समान समझने वाले, लाभ तथा हानि, जय और पराजय जैसे द्वन्द्वों को समान मानने वाले अनुद्विग्न, वीतराग तथा जल में रहने वाले कमलपत्र के समान वे सर्वथा निर्लेप तथा स्थितप्रज्ञ रहे ।