इसका अप्रवाह क्षेत्र दक्षिण-पश्चम सीमा पर राजनांदगांव की उच्च भूमि पर है ।
2.
अधिकतर विकार प्राण के कुप्रवाह, अप्रवाह या अतिप्रवाह के कारण होते हैं।
3.
और जो अप्रवाह है, उसका अभी हमें पता नहीं, उसकी हम खोज कर रहे हैं।
4.
[3] ग्रामीण क्षेत्रों में छत से प्राप्त वर्षाजल से उत्पन्न अप्रवाह संचित करने के लिए भी बहुत सी संरचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
5.
पर्युदर्या के बाहर की फटन में केवल अधिजघन का सिस्टोस्टोमी (cystostomy) करके पूर्व मूत्राशयी (prevesical) स्थान का अप्रवाह (drain) श्करना होता है, इसमें मूत्राशय फटन को सीने की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं।