.. तू समझती है कि मेरे आंखें नहीं है?... अरी! मैं सात तालोंमें बन्द चीज देख सकता हूं.
6.
आने वाले ' बसंत-पर्व' में मैं भी कुछ गाना चाहूँगा..... “आया बसंत, पट हटा अरी! चख चहक रहे, अब करो बरी.
7.
विपरीत से तुम सीध में आओ. अरी! पीठ न तुम मुझको दिखाओ.मैं तुम्हें बिन देखकर पहचान लेता हूँ.कल्पना से मैं नयन का काम लेता हूँ.एक बार फिर कवि से आँख मिलाओ.
8.
विलम्ब होते देख रोहिणी जी दासियों से बोल उठीं-' अरी! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नन्द को सूचना दे दो।' फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सूतिकागार आनन्द और कोलाहल में डूब गया।
9.
विलम्ब होते देख रोहिणी जी दासियों से बोल उठीं-' अरी! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नन्द को सूचना दे दो।' फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सूतिकागार आनन्द और कोलाहल में डूब गया।
10.
जीत की बिब्बी जोर-जोर से चीखे जा रही थी, ”अरी!ओ जीतो जल्दी आ.देख सरदार जी को खांसी लगी है|भीतर से मुलहठी-मिसरी ले आ| अरी! पानी का गिलास भी लेती आइयो| नास पिट्टी सारा दिन खेल में लगी रहे है|”