इस प्रकार की अलसता का वर्णन उस भद्दी रुचि का परिचायक है
2.
वह अलसता की लता और कोमलता की कली-सी भी नहीं है।
3.
अलसता की-सी लता, किंतु कोमलता की वह कली,सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बाँह,छाँह सी अम्बर-पथ से चली।
4.
अलसता की-सी लता, किंतु कोमलता की वह कली, सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह सी अम्बर-पथ से चली।
5.
अलसता की-सी लता, किंतु कोमलता की वह कली, सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह सी अम्बर-पथ से चली।
6.
अलसता की-सी लता, किंतु कोमलता की वह कली, सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बांह, छांह सी अम्बर-पथ से चली।
7.
अलसता की सी लता किंतु कोमलता की वह कली सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह सी अंबर-पथ से चली।
8.
झिल्ली-झनकार का एकांतिक मर्मर स्वर इस अलसता की वेदना को निर्मम भाव से जगा रहा था, जिससे महेंद्र के हृदय की सुप्त व्याकुलता तिलमिला उठती थी।
9.
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घनघोर! राग-अमर अंबर में भर निज रोर! अरे वर्ष के हर्ष-बरस तूं बरस-बरस रसधार! नदी नाले तथा सर्वत्र पानी बहता देख कवि की स्वाभाविक उक्ति है-देख-देख नाचता हृदय बहने को महाविकल-बेकल, आसमान से उतरती हुई संध्या के चित्र को देखिए-अलसता की-सी लता किन्तु कोमलता की वह कली, सखी नीरवता के कंधे पर डाले बांह छांह-सी अंबर पथ से चली।