उन्होंने सभी मानसिक घटनाओं को साहचर्य से और समस्त साहचर्य को अव्यवधान अर्थात एक साथ घटित होने से उत्पन्न प्रतिपादित किया।
2.
उन्होंने सभी मानसिक घटनाओं को साहचर्य से और समस्त साहचर्य को अव्यवधान अर्थात एक साथ घटित होने से उत्पन्न प्रतिपादित किया।
3.
मानवजीवन के अव्यवहित अनंतर [तुरंत बाद] होनेवाले गाय के जीवन में संस्कारों का उद्बोधक, मानवजीवन का सामीप्य या अव्यवधान नहीं है ;
4.
जातिदेशकालव्यवहितानामप्यानन्तर्यं स्मृतिसंस्कारयोरेकरूपत्वात् ॥ 4 / 9 ॥ [170] जाति, देश और काल से व्यवहित भी (वासनाओं का) आनन्तर्य-अव्यवधान (स्मृति के साथ बना रहता है, क्योंकि) स्मृति और संस्कारों के एकरूप होने से-समानविषयक होने से ।