से बाहर फेंक दिया, ‘‘पढ़ना है तो मूल और असंक्षिप्त
5.
1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-असंक्षिप्त वर्शन गया गया था।
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1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-असंक्षिप्त वर्शन गया गया था।
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1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-असंक्षिप्त वर्शन गया गया था।
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1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-असंक्षिप्त वर्शन गया गया था।
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1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में इसका पूर्ण-असंक्षिप्त वर्शन गया गया था।
10.
किताब छोटी सी है, कुल ११२ पन्ने (राजकमल पेपरबैक्स, मूल संस्करण का असंक्षिप्त रूप, पहला संस्करण १९८६) और कापीराइट है पद्मपराग राय रेणु का जो शायद रेणु जी के पुत्र थे.