भारतीय कम्युनिस्टों को तो वे असुधारणीय यान्त्रिक भौतिकवादी मानती हैं।
2.
हालाँकि वह इन गलतियों का स्रोत तलाशने तक नहीं जाते हैं, जो कि अम्बेडकर के असुधारणीय बुर्जुआ उदारवादी, व्यवहारवादी, इंस्ट्रूमेण्टलिस्ट, प्रतिगामी विचार हैं।
3.
जाहिरा तौर पर किसी भी न्यायप्रिय एवं इंसाफपसन्द व्यक्ति को यह फैसला उपयुक्त लगा होगा क्योंकि कसाब का जुर्म नृंशस आपराधिक प्रवृत्ति का था और लगभग असुधारणीय था।
4.
इन विचार सरणियों में हमें बिना किसी “ सैद्धांतिक पूर्वाग्रह ” के एक पर-सैद्धांतिक, शुद्ध और आद्य वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण कर परीक्षण और गणना करने के लिए कहा जाता है और ठीक यही काम श्रीमान तेलतुम्बडे भी बार-बार अपने इस लेख में करते हैं: सिद्धांत के प्रति एक शाश्वत व सतत् घृणा और पद्धति के प्रति एक असुधारणीय अंधभक्ति।
5.
अण्णा हज़ारे और उनके चेले-चपाटी पहले तो पूरी की पूरी संसद और विधानसभाओं, भारत के पूरे राजनीतिक वर्ग और नौकरशाही को भ्रष्ट और असुधारणीय बताते हैं_ लेकिन इसके बाद वे इस पूरे शासक वर्ग को उखाड़ फेंकने की बात नहीं करते! वे इसी (भ्रष्ट और असुधारणीय) शासक वर्ग और उसकी व्यवस्था से चिरौरी-मिन्नत करते हैं, उसे ब्लैकमेल करते हैं, फिर उससे विनती करते हैं, कि वह एक जनलोकपाल बना दे! यह क्या अपने आप में मज़ाकिया नहीं है?
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अण्णा हज़ारे और उनके चेले-चपाटी पहले तो पूरी की पूरी संसद और विधानसभाओं, भारत के पूरे राजनीतिक वर्ग और नौकरशाही को भ्रष्ट और असुधारणीय बताते हैं_ लेकिन इसके बाद वे इस पूरे शासक वर्ग को उखाड़ फेंकने की बात नहीं करते! वे इसी (भ्रष्ट और असुधारणीय) शासक वर्ग और उसकी व्यवस्था से चिरौरी-मिन्नत करते हैं, उसे ब्लैकमेल करते हैं, फिर उससे विनती करते हैं, कि वह एक जनलोकपाल बना दे! यह क्या अपने आप में मज़ाकिया नहीं है?