बात पोस्त और पोस्ट कीसंस्कृत में अफीम के लिए अहिफेन नाम मिलता है।
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यह उत्तम अफीम है. अहिफेन प्रयोग के मार्ग-(१) मुख द्वारा-चूर्ण, द्रव, वटी रूप में.
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बात पोस्त और पोस्ट की संस्कृत में अफीम के लिए अहिफेन नाम मिलता है।
4.
अहिफेन का शरीर में शोषण एवं निष्क्रमण-मारफीन बहुत शीघ्र सभी श्लेष्मिक कलाकी दीवारों से शोषित हो जाता है.
5.
अहिफेन योगों का प्रयोग निम्नलिखित अवस्थाओं या परिस्थितियों में वर्जित है-(१) केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की तीव्र शोथयुक्त अवस्था में.
6.
यह कुल अहिफेन कुल (Papave raceae) और करीर कुल (Capparidaceae) से कुछ मिलता जुलता हैं, परंतु निम्नांकित लक्षणों से युक्त इसका वैशिष्ट्य स्पष्ट होता है।
7.
फुफ्फुस में यदि श्लेष्मा अधिक मात्रा में संचित हो औरखांसी चलकर ही कफ बाहर आता हो उस काल में भी अहिफेन का प्रयोग कास रोकने केलिए कदापि नहीं करना चाहिये.
8.
कास, श्वास, कुकर खांसी, न्युमोनिया, दमा, फुफ्फुसावरण शोथ आदि में अहिफेन का प्रयोग किया जाता है, किन्तु इसकी मात्रा पर पूरा विचार कर लेना आवश्यक है क्योंकि बहुत शीघ्र यहश्वसन केन्द्र का अवरोध करके मृत्यु की सम्भावना उत्पन्न कर देती है.
9.
कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष-ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता॥48॥ इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मन्त्र, यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं।
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कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष-ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता॥ 48 ॥ इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मन्त्र, यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं।
परिभाषा
साँप की लार:"सपेरा अहिफेन एकत्रित करके बेचता है" पर्याय: नागझाग, नाग-झाग, सर्पफेण,