कुछ चित्र आकारहीनता का अहसास कराते हैं, तो कुछ ब्रह्मांड की रचना करते प्रतीत होते हैं।
3.
यह आकारहीनता का गुण ही व्यक्ति व समाज में पारदर्शिता, पूर्वाग्रह मुक्ति और सर्वांगीणता का बुनियादी तत्व है।
4.
मन्दिरों की अभिकल्पन प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वयं वास्तुशिल्पीय आकारों में प्रसर्जन के रूप उत्पन्न होने लगते हैं| अधिक जटिल आकार वाली रचनाओं का सिलसिला जिसमें प्रत्येक आकार को पिछले अधिक सरल आकार से निकाला गया है| इस प्रक्रिया के द्वारा मन्दिर के आकार परिवर्तनात्मक बन जाते हैं, एवं ऐसा लगता है कि वे उभर रहे हैं, विकसित हो रहे हैं एवं प्रचुर मात्रा में उत्पन्न हो रहे हैं| इसके परिणामस्वरूप आकारहीनता से आकार विकसित होते हैं एवं अंत में वे एक बार फिर आकारहीनता में विलीन हो जाते हैं|
5.
मन्दिरों की अभिकल्पन प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वयं वास्तुशिल्पीय आकारों में प्रसर्जन के रूप उत्पन्न होने लगते हैं| अधिक जटिल आकार वाली रचनाओं का सिलसिला जिसमें प्रत्येक आकार को पिछले अधिक सरल आकार से निकाला गया है| इस प्रक्रिया के द्वारा मन्दिर के आकार परिवर्तनात्मक बन जाते हैं, एवं ऐसा लगता है कि वे उभर रहे हैं, विकसित हो रहे हैं एवं प्रचुर मात्रा में उत्पन्न हो रहे हैं| इसके परिणामस्वरूप आकारहीनता से आकार विकसित होते हैं एवं अंत में वे एक बार फिर आकारहीनता में विलीन हो जाते हैं|