आत्म-अस्तित्व, ईगो, अपना दृष्टिकोण, स्व-सत्ता की अनुभूति व व्यक्तित्व इसी को कहते हैं।
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इस प्रकार काम को एक मानव मूल्य और संस्कार के रूप में स्वीकार करके भारतीय संस्कृति ने यह सिद्व कर दिया है कि हमारे यहां व्यवहारिक जीवन का कभी निषेध नहीं किया जाता साथ ही केवल व्यवहारिक जीवन में खोकर अपने आत्म-अस्तित्व को खोने का निर्देश भी नही किया जाता बल्कि व्यवहार से परमार्थ प्राप्ति का पथ बताने वाली पथ प्रदर्शक की योग्यता रखने वाली संस्कृति का नाम है-भारतीय संस्कृति।
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इस प्रकार काम को एक मानव मूल्य और संस्कार के रूप में स्वीकार करके भारतीय संस्कृति ने यह सिद्व कर दिया है कि हमारे यहां व्यवहारिक जीवन का कभी निषेध नहीं किया जाता साथ ही केवल व्यवहारिक जीवन में खोकर अपने आत्म-अस्तित्व को खोने का निर्देश भी नही किया जाता बल्कि व्यवहार से परमार्थ प्राप्ति का पथ बताने वाली पथ प्रदर्शक की योग्यता रखने वाली संस्कृति का नाम है-भारतीय संस्कृति।