आधार-भित्ति मानव की सजर्नात्मक प्रतिभा है, इसलिए वह बराबर
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के भी नहीं, बल्कि मूल्यदृष्टि की भी आधार-भित्ति के परिवर्तन।
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बोझ की आधार-भित्ति तो प्रेम है-प्रेम जो प्रीतम का घर है, ‘खाला का
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और उल्टे का यह बोध एक तरफ हमारे गोचर अनुभवों की आधार-भित्ति है और
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उस बोझ की आधार-भित्ति तो प्रेम है-प्रेम जो प्रीतम का घर है, ‘ खाला का घर नाँहि।
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यह आधार-भित्ति मानव की सजर्नात्मक प्रतिभा है, इसलिए वह बराबर पूर्वानमुमेयता की सीमा में परे जाती रहती है।
7.
ऊध्र्व और अधर के सीधे और उल्टे का यह बोध एक तरफ हमारे गोचर अनुभवों की आधार-भित्ति है और दूसरी तरफ हमारी सर्जनात्मक कल्पना की।
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अब इतने विवेचन के बाद मैं सिद्धान्त अथवा स्थापना के रूप में यह बात कह सकता हूँ कि सर्जनात्मक साहित्य के द्वारा आनेवाले परिवर्तन संवेदन के परितर्वन होते हैं ; व्यवस्था के नहीं, व्यवस्थाओं में अन्तर्निहित मूल्यदृष्टि के भी नहीं, बल्कि मूल्यदृष्टि की भी आधार-भित्ति के परिवर्तन।