ये सिर्फ नास्तिकवाद आस्तिकवादी चर्चा का केंद्र ही नहीं...
2.
हमें एक बात पर विचार करना चाहिए कि वैदिक धर्म से अलग संसार में अन्य जितने भी मत प्रचलित हैं उनमें से भी अधिकांश मत आस्तिकवादी हैं।
3.
यथार्थवादी तार्किक दृष्टिकोण और खण्डनात्मक स्वरूप के कारण चार्वाक दर्शन आस्तिकवादी भारतीय दर्शनों के समान जन-ग्राह्य न बन सका, परंतु अपने इसी विशिष्ट स्वरूप के कारण यह समस्त भारतीय दर्शनों में तो अपनी पृथक् सत्ता के साथ विद्यमान है ही;
4.
ये सिर्फ नास्तिकवाद आस्तिकवादी चर्चा का केंद्र ही नहीं...आध्यात्म और सत्य असत्य पर होने वाली बहसें नितांत बकवास हो जाती हैं कभी कभी...बेहतर यही रहता है कि विचारधाराओं के लोप और तत्कालीन समय की व्यवस्था अथवा आज के समय में ऐसी विचाधाराओं की भूमिका क्या हो सकती है...इसपर की जाए चर्चा....तो यह बेहतर होगी Nishant