ठीक वैसे ही जैसे इत्र का काम करनेवाले को इत्रफ़रोश या अत्तार कहतेहैं।
2.
(ख्वाहाँ = चाहने वाले ; इत्रफ़रोश = इत्र बेचने वाले ; तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा = फूलों पर न्योछावर होने वाली बुलबुल के नग्मों को चाहने वाला)
3.
कभी कभी मौसम आता है इत्रफ़रोश की तरह तुम्हारी खुशबू गलियों में बिखेरता, कोई भीगा नगमा गाता हुआ लगे कि फिर से तुमने खींच कर रख लिया है, मेरा हाथ अपनी कमर पर सड़क के किनारे की रेत ने शरमा कर खा लिए हैं कई भंवर बीती सांझ जैसा ही उगा है, पूरा गोल सूरज सिंदूरी सिंदूरी।