इन्द्रयव वाक्य
उच्चारण: [ inedreyv ]
"इन्द्रयव" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- इसके बीजों को कलिंड्ग । इन्द्रयव । अरिष्ट कहते हैं ।
- इन्द्रयव का काढ़ा बनाकर काढ़े में सोंठ का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर का रोग ठीक होता है।
- बेलगिरी, गोचरस, नेत्रबाला, नागरमोथा, इन्द्रयव, कूट की छाल सभी को लेकर पीसकर कपड़े में छान लें।
- पित्त संग्रहणी होने पर रसौत, अतीस, इन्द्रयव, धाय के फूल सबको एक ही मात्रा में लेकर बारीक पीस लें।
- चिरायता, कुटकी, त्रिकुट (सोंठ, काली मिर्च, पीपल), मुस्तक, इन्द्रयव, करैया की छाल एवं चित्रक बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें।
- इन्द्रयव-इसके `` कुटजमद्रयव ' ' आदि अनेक नाम है यह संग्राही और ठण्डा कड़वा है, तीनों दोशों को दूर करता है, अतिसार, कुश्ठ, रुधिर प्रकोप युक्त अशZ को ठीक करता है।
- 10-10 ग्राम चिरायता, कुटकी, त्रिकुटा (सोंठ, काली मिर्च, पीपल), नागरमोथा और इन्द्रयव, 20 ग्राम चित्रक और 1.60 ग्राम कुड़ा की छाल को लेकर अच्छी तरह से पीसकर और छानकर मिलायें।
- 5-5 ग्राम की मात्रा में साठी की जड़, पीपल, कालीमिर्च, सोंठ, वायबिडंग, दारूहल्दी, चित्रक, त्रिफला, चक, इन्द्रयव, पीपलामूल, नागरमोथा, खुरासानी अजवाइन को एकसाथ मिलाकर बारीक पीस लें।
- करंज के पंचांग, यवासा, पुष्कर की जड़, भारंगी, शटीप्रकन्द, कर्कटश्रंगी, इन्द्रयव, पटोलपत्र और कटुकी के प्रकन्द आदि को मिलाकर काढ़ा बना लें और इस काढ़े को दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराएं।
- इसके तने की छाल से बनती है डिसेंट्री की औषधि, इसकी लम्बी फली में लगने वाले यव के आकार के बीजों (इन्द्रयव) से बनती है मधुमेह की औषधि और इसकी जड़ की छाल के चूर्ण का क्षीरपाक लाभ करता है ट्युबर्क्युलोसिस में।
- चिरायता, शुंठी, देवदारू की लकड़ी, पाठा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल), मुस्तक की जड़, मूर्वा, सारिया की जड़, गुडूचीतना, इन्द्रयव और कटुकीप्रकन्द को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी काढ़े को 14 मिली लीटर से लेकर 28 मिली लीटर को खुराक के रूप में पिलाने से स्तनों के रोग में स्त्री को लाभ पहुंचता हैं।
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