जब बिखरा ईंगुर धरती पर आया मंदिर से शंखनाद कानों से आकर टकराया वह परम सत्य वह चिर निनाद इस मन की दशा न रहती थिर यह तो पारद सा है चंचल मैं कह्ता पीर बड़ी मेरी है दुखी बहुत अंतस रहता पर गर्जन कर सारंग कह्ता, मैं तुमसे कहीं अधिक बहता बस अब न रहा अंतर कोई अब तुम भी मुझ से हुए विरल