दिया, जिसके अनुसार समस्त तर्कवाद (आलोचना के रूप में दार्शनशास्र) शून्यवाद बनकर रह जाता है और इसलिए इससे बचना चाहिये व इसके स्थान पर विश्वास और ईश्वरोक्ति के किसी प्रकार पर लौट आना चाहिये.
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दिया, जिसके अनुसार समस्त तर्कवाद (आलोचना के रूप में दार्शनशास्र) शून्यवाद बनकर रह जाता है और इसलिए इससे बचना चाहिये व इसके स्थान पर विश्वास और ईश्वरोक्ति के किसी प्रकार पर लौट आना चाहिये.