सारे लिन्क अपने ब्लाग पर उद्धित करके आपने कुछ गलत ही परिचय दिया है...
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आप फिजूल ही अपने लेखों में जब-तब यह शेर उद्धित करते रहे हैं-जब तक ऊँची न हो ज़मीर की लौ आँख को रौशनी नहीं मिलती
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आप फिजूल ही अपने लेखों में जब-तब यह शेर उद्धित करते रहे हैं-जब तक ऊँची न हो ज़मीर की लौआँख को रौशनी नहीं मिलती अब आप रौशनी देने चले थे उन्हें जिनके ज़मीर में आग ही नदारत थी।